कितना प्यारा था, मेरा वो बचपन
जीवन मे नहीं थी, कोई उलझन
दिनभर खेलते रहते थे
दिनभर टहलते रहते थे
ना खाने की थी, कोई चिन्ता
ना पीने की थी,कोई चिन्ता
कितना प्यारा था,मेरा वो जीवन
कितना प्यारा था, मेरा वो बचपन
जीवन बिलकुल, सीधा-साधा था
परिजन का प्यार, जरा ज्यादा था
हमको छल-कपट, कुछ नहीं आता था
हमे तो बस, खेल-कूद ही आता था
ना थी किसी से कोई जलन
कितना प्यारा था, मेरा वो बचपन
ना कमाने की कोई चिन्ता थी
ना कोई दुनियादारी की चिन्ता थी
जहाँ पर प्यार मिले, वहा पर चले जाते थे
जहाँ पर यार मिले, वहा पर चले जाते थे
ना था जीवन मे , कोई बंधन
कितना प्यारा था, मेरा वो बचपन
माँ रखती थी, कितनी देखभाल
पिता रखते थे, कितना ख्याल
दोस्तों के संग, वो छुपा-छाई खेलना
स्कूल मे, गुरूजी की वो छड़ी झेलना
कहा गया वो अपनापन
कितना प्यारा था, मेरा वो बचपन
प्रदीप कछावा
7000561914
prkrtm36@gmail.com
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