दुनिया में कितना, शोर हे
अब जीवन लगता, बोर हे
जीवन में नहीं दिखती, कही भी शांति
हर जगह दिखती हे, बस क्रांति
ये लोगो को, क्या हो गया हे
किसी का कुछ, खो गया हे
जिंदगी लगती, अब तो कठोर हे
दुनिया में कितना, शोर हे
अब जीवन लगता, बोर हे
मन उदास रहता हे
किसी से कुछ ना, ये कहता हे
ये तो बहुत कुछ, सहता हे
हमेशा चुप ही, रहता हे
ये केसा दौर हे
दुनिया में कितना, शोर हे
अब जीवन लगता, बोर हे
जीवन जीने के लिए, क्या-क्या नहीं करना पड़ता हे
सारी दुनिया से अकेले ही, लड़ना पड़ता हे
सब दिलासा देते हे,यहां पर
अब पहले जैसे लोग हे, कहां पर
जो सुख-दुँ;ख ले, बटोर
दुनिया में कितना, शोर हे
अब जीवन लगता, बोर हे
प्रदीप कछावा
7000561914
prkrtm36@gmail.com
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